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प्रस्तावना
• आत्म-जिज्ञासा की सम्पूर्ति
भगवान् महावीर आत्म-साक्षात्कार के महान् प्रवर्तक थे। आत्मसाक्षात्कार अर्थात् सत्य का साक्षात्कार । सत्य का उपदेश वही दे सकता है जो उसका साक्षात्कार कर पाता है। भगवान सत्य के अनन्त रूपो के द्रष्टा थे। पर जितना देखा जाता है, उतना कहा नही जा सकता। भगवान ने जिन सत्यो का निरूपण किया, वे भी हमे पूर्णतः ज्ञात नही है। मनुष्य जितना ज्ञात की ओर मुकता है, उतना अज्ञात की ओर नही। भगवान महावीर ने अहिंसा, सत्य आदि का उपदेश दिया, जातिवाद की तात्त्विकता का खण्डन किया, यज्ञ-हिंसा का विरोध किया आदि-आदि । जो ज्ञाततथ्य है, वे ही उनकी गुण-गाथा मे गाए जाते है। किन्तु भगवान ने जीवन के ऐसे अनेक ध्रुव-सत्यो पर प्रकाश डाला, जिन पर हमारा ध्यान सहज ही आकृष्ट नही होता, क्योकि वे हमारे लिए ज्ञात होकर भी अज्ञात है। अज्ञात को पकड़ने मे जो कठिनाई होती है, उससे कही अधिक कठिनाई होती है उसे पकड़ने मे, जो ज्ञात होकर भी अज्ञात होता है।