Book Title: Shadshitinama Chaturtha Karmgranth
Author(s): Rasiklal Shantilal Mehta
Publisher: Agamoddharak Pratishthan
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ता दीवुदहिसु इक्किक्क सरिसवं खिवियनिट्ठिए पढमे । पढमं व तदंतं चिय, पुण भरिए तंमि तह खीणे ॥७४।। खिप्पइ सलागपल्लेगु सरिसवो इय सलागखवणेणं । पुन्नो बीओ अ तओ, पुव्वंपिव तंमि उद्धरिए ॥ ७५॥ खिणे सलागतइए, एवं पढमेहिं बीअयं भरसु । तेहिं तइअं तेहि य, तुरिअं जा किर फुडा चउरो ॥ ७६ ॥ पढमतिपल्लुद्धरिआ, दीवुदही पल्ल चउ सरिसवा य । सव्वो वि एगरासी, रूवूणो परमसंखिजं ॥ ७७ ॥ रूव जुअं तु परित्ता संखं लहु अस्स रासि अब्भासे । जुत्तासंखिजं लहु, आवलिआ समय परिमाणं ॥ ७८ ॥ बितिचउपंचमगुणणे कमा सगासंख पढमचउसत्ता । णंता ते रूवजुआ, मज्झा रूवूण गुरु पच्छा ॥ ७९ ॥ इय सत्तत्तं अन्ने वग्गिअमिक्कसि चउत्थयमसंखं । होइ असंखासंखं लहु रूवजुयं तु तं मज्झं ॥ ८० ॥ रूवूणमाइमं गुरु, तिवग्गिउं तत्थिमे दसक्खेवे । लोगागासपएसा, धम्माधम्मेगजिअदेसा ॥ ८१ ॥ ठिइबंधज्झवसाया, अणुभागा जोगच्छेयपलिभागा । .. दुण्ह य समाण समया, पत्तेअ निगोअए खिवसु ॥ ८२ ॥ पुण तंमि तिवग्गियए, परित्तणंत लहु तस्स रासीणं । अब्भासे लहु जुत्ताणंतं अभव्वजिअमाणं ॥ ८३ ॥ तव्वग्गे पुण जायइ, णंताणंत लहु तं च तिक्खुत्तो । वग्गसु तहवि न तं होइ, णंत खेवे खिवसु छ इमे ॥ ८४ ॥ सिद्धा निगोअजीवा, वणस्सई काल पुग्गला चेव । सव्वमलोगनहं पुण, तिवग्गिउं केवलदुगंमि ॥ ८५ ॥ खित्ते णंताणंतं, हवेइ जिठं तु ववहरइ मझं । इय सुहुमत्थविआरो, लिहिओ देविंदसूरीहिं ॥ ८६ ॥
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