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सम्यग्दर्शन की विधि
___ भावार्थ :- ‘जैसे स्वर्ण के अस्तित्व में ही उसकी कुण्डल-कंकण आदि अवस्थायें सिद्ध होती हैं, क्योंकि उन अवस्थाओं के होने से ही स्वर्ण में उत्पादादिक होते हैं अर्थात् स्वर्ण का स्वर्णपना द्रव्य दृष्टि से तदवस्थ रहने पर भी पर्यायार्थिक दृष्टि से कुण्डल-कंकण आदि के ही उत्पादादिक होते हैं परन्तु यदि वास्तविक विचार किया जाये तो उन कुण्डलादिक अवस्थाओं में मात्र आकार से आकारान्तर ही है, परन्तु असत् की उत्पत्ति और सत् का विनाश नहीं। इसलिये शंकाकार का कथंचित् नित्यानित्यात्मक पदार्थ में उत्पादादिक नहीं बनेंगे, यह कहना युक्तिसंगत नहीं है। कारण-कार्य भाव भी निम्न प्रकार सिद्ध होता है।'
श्लोक १९७ : अन्वयार्थ :- ‘इस प्रक्रिया अर्थात् शैली से ही निश्चय से कारण और कार्य की सिद्धि भी समझ लेना चाहिये क्योंकि इस सत् के ही सत् अर्थात् ध्रौव्य तथा उत्पाद और व्यय ये दोनों होते हैं।'
भावार्थ :- “जिस प्रकार कथंचित् नित्य-अनित्यात्मक पदार्थों में ही उत्पादादिकत्रय होते हैं, परन्तु सर्वथा नित्य या सर्वथा अनित्य पदार्थों में नहीं हो सकते-ऐसा सिद्ध किया, उसी प्रकार पदार्थों को नित्य-अनित्यात्मक मानने से ही कारण-कार्य भाव भी सिद्ध हो सकता है, परन्तु सर्वथा नित्य या अनित्य पदार्थों में नहीं, क्योंकि सर्वथा नित्य पक्ष में परिणाम बिना कार्य-कारण भाव नहीं बन सकता तथा सर्वथा अनित्य पक्ष में पदार्थ मात्र क्षणवर्ती सिद्ध होने से और उनका प्रतिसमय निरन्वयनाश मानने से 'नित्य शक्ति पिण्ड रूप सत् (द्रव्य) कारण है तथा अनित्य परिणाम रूप उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य उसके कार्य हैं।' ऐसा कार्य-कारण भाव नहीं बन सकता, इसलिये कथंचित् नित्य-अनित्यात्मक पदार्थों में ही उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य और कार्य-कारण भाव भलीभाँति सिद्ध होता है। क्योंकि नित्य-अनित्यात्मक पदार्थों में ही सत् के उत्पादादिक मानने में आये हैं परन्तु निरन्वयनाश रूप या कूटस्थ नित्य में नहीं...."
द्रव्य और पर्याय ये वस्तु के दो भाव हैं, न कि दो भाग। इसलिये ही उसे कथंचित् नित्यअनित्य कहा जाता है तथा सर्वथा नित्य-अनित्य ऐसा नहीं कहा जाता अथवा माना जाता। इसलिये जो कोई द्रव्य को एकान्त से नित्य-अपरिणामी और पर्याय को एकान्त से अनित्य-परिणामी मानते हों, उनका यहाँ निराकरण किया है। इसलिये ऐसी जिनकी धारणा हो, उनसे अपनी धारणा सुधार लेने का अनुरोध है।
श्लोक २०० : अन्वयार्थ :- “निश्चय से उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य ये तीनों पर्यायों में होते हैं