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सम्यग्दर्शन की विधि
का दोष सेवन करके भी बारम्बार उसी बात को स्पष्ट किया है कि वस्तु व्यवस्था और स्याद्वाद शैली समझे बिना शब्द और वाक्यों के अर्थ समझना अत्यन्त कठिन है। लेकिन अनेकान्त स्वरूप वस्तु व्यवस्था समझने के बाद वह अत्यन्त सरल है, यही बात आगे स्पष्ट करते हैं।
श्लोक २५४ : अन्वयार्थ :- 'ध्रौव्य भी उत्पाद-व्यय के बिना नहीं होता क्योंकि वहाँ विशेष के अभाव में सतात्मक सामान्य का भी अभाव होता है' अर्थात् उत्पाद-व्यय रूप विशेष ध्रौव्य रूप सामान्य का ही बना है। इसी से एक के अभाव में दूसरे का भी अभाव होता है।
भावार्थ :- ‘वस्तु सामान्य विशेषात्मक है, विशेष निरपेक्ष सामान्य तथा सामान्य निरपेक्ष विशेष वह कोई वस्तु ही सिद्ध नहीं होती, ध्रौव्य सामान्य रूप है और उत्पाद-व्यय विशेष रूप है। इसलिये उत्पाद-व्यय बिना ध्रौव्य भी नहीं बन सकता, क्योंकि उत्पाद-व्ययात्मक विशेष बिना ध्रौव्यात्मक सामान्य की भी सिद्धि नहीं हो सकती-इसलिये -'
श्लोक २५५ : अन्वयार्थ :- ‘इस प्रकार यहाँ उत्पादादिक तीनों की व्यवस्था बहत सुन्दर है परन्तु उन उत्पादादिक तीनों में से किसी एक के निषेध को कहनेवाला अपने पक्ष का भी घातक होता है। इसलिये उत्पाद, व्यय, ध्रौव्य में से केवल एक की व्यवस्था मानना ठीक नहीं है।'
यहाँ स्पष्ट होता है कि यदि कोई अभेद द्रव्य में से पर्याय को अलग करने का प्रयत्न करेगा अर्थात् जिसे पर्याय रहित द्रव्य इष्ट होगा तो उसके लिये पूर्ण द्रव्य का ही लोप हो जायेगा, अर्थात् वह मात्र भ्रम में ही रह जायेगा। इसलिये पर्याय रहित द्रव्य पाने की विधि जो ऊपर बतलायी है, वैसे द्रव्यार्थिक नय के चक्षु से अर्थात् द्रव्य दृष्टि से है। मात्र द्रव्य को ही ध्यान में लेने से वह पूर्ण द्रव्य कि जिसे आप प्रमाण का द्रव्य भी कह सकते हैं, वैसा पूर्ण द्रव्य ही मात्र द्रव्य रूप अर्थात् ध्रुव रूप ही ज्ञात होगा, उसका ही लक्ष्य होगा। इसलिये पर्याय रहित द्रव्य चाहिये तो उसकी विधि ऐसी ही है। अन्य किसी प्रकार से तो द्रव्य का ही अभाव हो जायेगा और वह स्वयं अपने पक्ष का ही घातक बनकर मात्र भ्रम में ही रहेगा।
दसरा, कोई वर्तमान पर्याय को दृष्टि के विषय से बाहर रखे तो पूर्ण द्रव्य ही बाहर हो जायेगा। ऐसा है वस्तु स्वरूप। ऐसी है वस्तु व्यवस्था जैन सिद्धान्त की, जो कि अनेकान्त रूप है, एकान्त रूप नहीं। इस विधि से द्रव्य को परिणामी नहीं माननेवाले को क्या दोष आयेगा? उत्तर
श्लोक २५८ : अन्वयार्थ :- ‘निश्चय से केवल एक ध्रौव्यपने का विश्वास करने-माननेवाले