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सम्यग्दर्शन की विधि
तथा सम्यग्दृष्टि को वह (अनुभव) सामान्य रूप (परम पारिणामिक भाव रूप शुद्धात्मा रूप) होता है। इसलिये उन दोनों के उस अनुभव के स्वाद का अन्तर है और यह बात श्लोक २२४ से २२५ में दृष्टान्त देकर सिद्ध की है।
नौ तत्त्वों में सामान्य रूप से आत्मा को सम्यग्दृष्टि कैसा जानता है, यह श्लोक १९४ से १९६ में बतलाया है और तत्पश्चात् शुद्ध नय के विषय रूप आत्मा का स्वरूप श्री समयसार के श्लोक १४ को अनुसरण कर श्लोक २३४ से २३७ में दिया है। समयसार की ही गाथा ४०३ तथा पंचाध्यायी पूर्वार्द्ध श्लोक ५३२ के भावार्थ में भी शुद्ध नय के आश्रय से ही धर्म होता है ऐसा कहा है। धर्म अर्थात् सम्यग्दर्शन।
___ इस प्रकार भूतार्थ नय के आश्रय से ही सम्यग्दर्शन प्रगट हो सकता है, ऐसा इस गाथा में बतलाया है। यह कथन अध्यात्म भाषा से है, आगमिक भाषा में उपादान तथा निमित्त दोनों को बतलाया जाता है। इसलिए वहाँ 'जीव और कर्म' इत्यादि की व्यवस्था कैसी हो कि सम्यग्दर्शन प्रगट हो? यह बतलाया जाता है।" अर्थात् दृष्टि के विषय रूप शुद्धात्मा की उपलब्धि नौ तत्त्व को जानने से किस प्रकार होती है वह यहाँ स्पष्ट समझाया है।
श्लोक १९२ : अन्वयार्थ :- ‘जीव के स्वरूप को चेतना कहते हैं। वह चेतना यहाँ सामान्य रूप से अर्थात् द्रव्य दृष्टि से निरन्तर एक प्रकार होती है (उसे ही परम पारिणामिक भाव, शुद्धात्मा, कारण शुद्ध पर्याय इत्यादि नामों से पहचाना जाता है। वह वस्तु का सामान्य भाव है अर्थात् वस्तु को पर्याय से देखने पर उस पर्याय का सामान्य भाव है।) तथा विशेष रूप से अर्थात् पर्याय दृष्टि से वह चेतना क्रमपूर्वक दो प्रकार की है (अर्थात् औदयिक, उपशम, क्षयोपशम भाव रूप अशुद्ध अथवा क्षायिक भाव रूप शुद्ध ऐसी दो प्रकार की होती है) परन्तु वह युगपत् अर्थात् एक साथ नहीं (अर्थात् जब क्षायिक भाव विशेष भाव रूप होता है तब वह औदयिक इत्यादि रूप नहीं होता अर्थात् दोनों साथ नहीं होते।)'
शुद्ध तत्त्व अर्थात् परम पारिणामिक भाव रूप शुद्धात्मा वह कहीं नौ तत्त्वों से अलग नहीं। केवल नौ तत्त्व सम्बन्धी विकारों को कम करते ही अर्थात् गौण करते ही वही नौ तत्त्व ही शुद्ध हैं, अर्थात् वह परम पारिणामिक भाव रूप शुद्धात्मा ही है। वही दृष्टि का विषय है, अर्थात् इस अपेक्षा से नौ तत्त्व को जानने पर सम्यग्दर्शन कहा जाता है क्योंकि स्थूल से ही सूक्ष्म में जाया जाता है। प्रगट से ही अप्रगट में जाया जाता है। व्यक्त से ही अव्यक्त में जाया जाता है, यही नियम है।