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सम्यग्दर्शन का स्वरूप
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कोई ऐसा माने कि द्रव्य में शुद्ध भाग और अशुद्ध भाग ऐसे दो भाग होते है। जो शुद्ध भाग है वह द्रव्य है तथा अशुद्ध भाग है वह पर्याय है। वैसा नहीं है। यह बात हमने प्रथम ही शास्त्र की गाथाओं से नि:सन्देह सिद्ध की ही है कि द्रव्य को अपेक्षा से समझने से द्रव्य में दो भाग नहीं परन्तु दो भाव होते हैं। वे दो भाव इस प्रकार हैं कि जो विशेष है, वह पर्याय कहलाता है और वह विभाव भाव सहित होने से अशुद्ध कहलाता है। जो उसका ही सामान्य भाव है यानि परमपारिणामिक भाव रूप द्रव्य है, जो त्रिकाल शुद्ध ही होता है; इस अपेक्षा से द्रव्य शुद्ध और पर्याय अशुद्ध ऐसा कहा जाता है परन्तु ऐसे दो भाग नहीं होते।
__छद्मस्थ जीवों की आत्मा के प्रत्येक प्रदेश में अनन्त-अनन्त कर्म वर्गणायें हैं और वे कर्म वर्गणायें आत्मा के सर्व प्रदेशों के साथ क्षीर-नीरवत् (दध में पानी की भाँति) सम्बन्ध से बन्धी हुई होने की अपेक्षा से आत्मा का कोई भी प्रदेश शुद्ध नहीं है। अर्थात् यदि कोई ऐसा कहे कि आत्मा के मध्य के आठ रुचक प्रदेश तो निरावरण ही होते हैं, तो उन्हें हम बतलाते हैं कि यदि आत्मा का मात्र एक भी प्रदेश निरावरण हो तो उस प्रदेश में इतनी शक्ति है कि वह सर्व लोकालोक को जान ले, क्योंकि यदि एक भी प्रदेश निरावरण हो तो उस प्रदेश में केवल ज्ञान और केवल दर्शन मानने का प्रसंग आयेगा और इससे वह आत्मा सर्व लोकालोक सहज रीति से ही जाननेवाली हो जायेगी परन्तु प्रगट में देखने से यह ज्ञात होता है कि ऐसा तो किसी भी जीव में घटित होता ज्ञात नहीं होता। इस कारण जीव के मध्य के आठ रुचक प्रदेश निरावरण होते हैं, इस बात का निराकरण होता है। यह बात सत्य नहीं है, जिसका प्रमाण है धवल पुस्तक १२ में-पृष्ठ क्रमांक ३६५ से ३६८ के अन्तर्गत गाथा २ से १० को जिज्ञासु जीव कृपया उक्त गाथा को देख लें।
कई लोग नयविवक्षा न समझने के कारण ऐसी भी प्ररूपणा करते हैं कि इन आठ निरावरण प्रदेशों की अपेक्षा से सब जीव सिद्ध समान हैं' ऐसा शास्त्र का कथन है। परन्तु वास्तव में सब जीव सिद्ध समान हैं' यह कथन द्रव्यार्थिक नय की अपेक्षा से है, यह बात नयों की यथार्थ समझ नहीं होने से फैली है। और ऐसे लोग उन निरावरण प्रदेशों (जो कि संसारी जीव को नहीं होते) के अनुभव (जो कि छद्मस्थ जीव को नहीं होता) को ही शुद्धात्मा का अनुभव मानते हैं। उनको द्रव्य की अभेदता का और नयों का भी यथार्थ ज्ञान नहीं होता। यह अत्यन्त करुणाजनक बात है।
आगे हम सम्यग्दर्शन की विधि और उसके विषय के बारे में बताने का प्रयास करते हैं।