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पंचाध्यायी पूर्वार्द्ध की वस्तु व्यवस्था दर्शाते श्लोक
यह है कि वृक्ष रूप ध्रौव्य किसी पर्याय से भिन्न अपरिणामी विभाग नहीं, परन्तु जो पर्याय है वह विशेष है और उसका ही सामान्य अर्थात् वह जिसकी बनी हई है, उसे ही ध्रौव्य कहा जाता है अर्थात् अन्य कोई अपरिणामी ध्रौव्य अलग नहीं है, यह समझना आवश्यक है कि-वह द्रव्य ही है कि जिसकी पर्याय बनी हुई है, वह द्रव्यपने से ध्रौव्य) ऐसा भी है अर्थात् वृक्ष में (अर्थात् द्रव्य में) अलग-अलग अपेक्षा सेये तीनों (बीज, अंकुर और वृक्षपन अर्थात् व्यय, उत्पाद और ध्रौव्यपन) एक समय में होता है।' यही जैन सिद्धान्त के अनुसार वस्तु का स्वरूप है। मोक्ष के इच्छुक व्यक्ति को यही स्वीकार्य होना चाहिये।
भावार्थ :- ...बीज के अभाव और अंकुर के उत्पाद रूप दोनों अवस्थाओं में सामान्य रूप से वृक्षत्व मौजूद है...' अर्थात् समझना यह है कि विशेष रूप अवस्थायें (पर्यायें) सामान्य रूप (द्रव्य) की ही बनी हुई है।
श्लोक २४६ : अन्वयार्थ :- “जिस कारण से उत्पाद और व्यय इन दोनों की आत्मा स्वयं सत् है (अर्थात् उत्पाद, व्यय रूप पर्याय सत् रूप द्रव्य की ही बनी है कि जिसे सामान्य रूप से ध्रौव्य कहा जाता है) ये दोनों तथा ध्रौव्य ये तीनों सत् ही हैं, सत् से भिन्न नहीं (भिन्न प्रदेशी नहीं)।' वास्तव में वस्तु अभेद होने से ही ऐसी वस्तु व्यवस्था घटित होती है। अब सारांश
श्लोक २४७ : अन्वयार्थ :- ‘पर्यायार्थिक नय की अपेक्षा से उत्पाद है, व्यय है तथा ध्रौव्य है परन्तु द्रव्यार्थिक नय की अपेक्षा से न उत्पाद है, न व्यय है तथा न ध्रौव्य है।'
इसलिये हम जब द्रव्य-पर्याय स्वरूप वस्तु को अर्थात् प्रमाण रूप द्रव्य को मात्र द्रव्यार्थिक नय की अपेक्षा से त्रिकाली ध्रुव कहते हैं तब किसी को प्रश्न होगा कि-इस में प्रमाण का द्रव्य क्यों लिया जाता है ? तो उसका उत्तर यह है कि - जैसी आपकी दृष्टि होगी, वैसा ही द्रव्य आपको दिखेगा। जो द्रव्य को प्रमाण दृष्टि से देखते हैं, उन्हें वह द्रव्य = वस्तु प्रमाण रूप दिखेगा, जो पर्याय दृष्टि से देखे उसे वह द्रव्य मात्र पर्याय रूप ज्ञात होगा और उसी प्रमाण के द्रव्य को यदि द्रव्यार्थिक नय के चक्षु से निरखा जाये तो वह पूर्ण वस्तु (पूर्ण द्रव्य) मात्र त्रिकाली ध्रुव रूप ही ज्ञात होगा कि जो पर्याय से निरपेक्ष रूप सामान्य मात्र ही है; यही जैन सिद्धान्त की विलक्षणता है, कमाल है और यही विधि है पर्याय रहित द्रव्य पाने की। इसलिये सभी से हमारा निवेदन है कि सर्वप्रथम आप जैसा है वैसा' वस्तु व्यवस्था समझेंगे तो अपने प्रश्न का उत्तर, आपको अपने आप ही मिल जायेगा। इसी कारण यह बात इतने विस्तार से समझायी है और उसमें पुनरावर्तन