Book Title: Samyag Darshan Ki Vidhi
Author(s): Jayesh Mohanlal Sheth
Publisher: Shailendra Punamchand Shah

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Page 134
________________ 128 सम्यग्दर्शन की विधि भगवन्तों के गुणों के प्रति अहोभाव, सभी जीवों के लिये गुण दृष्टि इत्यादि करना आवश्यक है। * सत्य धर्म इतना सामर्थ्यवान है कि उसकी सच्ची श्रद्धा होने मात्र से वह जीव अपने आप उस धर्म के अनुकूल बदलना शुरु हो जाता है। * अपने आप को उस धर्म के अनुकूल बदलने से अपने सत्ता में रहे हए कर्मों के ऊपर अनेक प्रक्रियाएँ होना प्रारम्भ हो जाती हैं। जैसे - पाप प्रकृति का पुण्य प्रकृति में संक्रमण, पुण्य का उदवर्तन, पाप का अपवर्तन इत्यादि। इस से कई बार सूली की सज़ा सुई में बदल जाती है। * इस तरह से सूली की सज़ा सई में बदल जाने के बावजूद भी हमें उसका ज्ञान न होने से लोग कभी-कभी ऐसा भी सोचते हैं कि - देखो यह धर्मी जीव होने के बावजूद भी कितना दु:खी है ? मगर उन्हें पता नहीं है कि - सच्चा धर्मी जीव अब अमुक गति में जानेवाला ही नहीं होने से, उस गति के लायक पाप कर्मों का संक्रमण होकर अभी उदय में आये हैं, इस कारण से हमें कभी-कभी लगता है कि - यह धर्मी जीव होने के बावजूद भी कितना दु:खी है। * उस दु:ख के संयोग में भी अगर जीव उपरोक्त “धन्यवाद! स्वागतम् ! (Thank you! Welcome!)' का भाव लाने का पुरुषार्थ करता है, तब वह जीव दुःख में भी सुखी रह सकता है। लोगों को लगेगा कि यह जीव बहुत दुःखी है, मगर वह जीव “धन्यवाद! स्वागतम् ! (Thankyou! Welcome!)” और “जो भी होता है, अच्छे के लिये ही होता है" के माध्यम से समाधानी और समभावी बनकर शान्त और प्रसन्न रहता होगा। * हमने अनादि से आज तक अनन्तों बार दीक्षा ग्रहण की, अनन्तों बार व्रत-तप आदि किये, अनन्तों बार ध्यान आदि किये, अनन्तों बार हमने “मैं आत्मा हैं" या "मैं शुद्धात्मा हैं" या “अहं ब्रह्मास्मि” या “तत्त्वमसि' इत्यादि जाप किये या रट्टा लगाया; परन्तु सत् की प्राप्ति अर्थात् सम्यग्दर्शन की प्राप्ति नहीं हुई। क्योंकि जब तक आत्मा योग्यता की प्राप्ति नहीं करता तब तक सम्यग्दर्शन की प्राप्ति अति दुर्लभ है अर्थात् पहले हमें आत्मा को मोह के ज्वर से बचाना है। इसीलिये भगवान ने कहा है कि कई बार अनेक जीव नौ पूर्व के पाठी होने के बावजूद भी सम्यग्दर्शन नहीं पा सके। उस मोह के बुख़ार को नापने के लिये मानकमापदण्ड है यह प्रश्न - हमें क्या पसन्द है। इस प्रश्न के उत्तर में जब तक सांसारिक वस्तु या सम्बन्ध या इच्छा या आकांक्षा है, तब तक हमें समझना है कि हमको मोह का बहुत तेज़ बुख़ार है और उस बुख़ार का पहले कहे अनुसार इलाज करना आवश्यक है।

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