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पंचाध्यायी पूर्वार्द्ध की वस्तु व्यवस्था दर्शाते श्लोक
के लिये भी द्रव्य परिणामी नहीं बनेगा। उसका परिणामीपन न होने से वह ध्रौव्य, ध्रुव भी नहीं रह सकेगा।'
यहाँ समझना यह है कि जो कोई ध्रौव्य रूप द्रव्य को अपरिणामी मानते हों तो, वह ऐसा एकान्त से नहीं क्योंकि यदि ध्रौव्य अपरिणामी हो तो द्रव्य का ही अभाव होगा। इस कारण से ध्रौव्य का भी अभाव ही होगा, क्योंकि कोई भी वस्तु उसके वर्तमान के बिना नहीं होती। कोई भी द्रव्य (ध्रौव्य) उसकी अवस्था (वर्तमान = पर्याय) बिना होता ही नहीं और यदि ऐसा माना जाये तो उस द्रव्य के ध्रौव्य का ही अभाव हो जायेगा; इस कारण से उस ध्रौव्य को अवश्य परिणामी मानना पड़ेगा और वह परिणाम (अर्थात् उपादान रूप ध्रौव्य का कार्य - उसकी अवस्था) को ही उत्पाद-व्यय रूप पर्याय कहा जाता है। और उसमें (पर्याय में) रहे हुए सामान्य भाव (अर्थात् पर्याय जिसकी बनी है वह भाव) को ध्रौव्य कहा जाता है। यह वैसा ही है' यही उसका लक्षण है। और इस लक्षण अपेक्षा से उसे अपरिणामी भी कहा जाता है। अन्यथा नहीं। अन्यथा समझने से तो मिथ्यात्व का ही दोष आयेगा। उपसंहार
श्लोक २६० : अन्वयार्थ :- 'ऊपर के दोषों के भय से तथा प्रकृत आस्तिकता को चाहनेवाले पुरुषों को यहाँ पर उत्पादादिक तीनों को उपरोक्त अविनाभावी ही मानना चाहिये।'
अर्थात् यह बात लक्ष्य में लेने योग्य है कि-जो कोई इस प्रकार से वस्तु व्यवस्था न मानते हों, उन्हें मिथ्यात्वी ही समझना। जो कोई आत्मार्थी है, उन्हें यहाँ बतलायी गई वस्तु व्यवस्था को ही सम्यक् समझकर अपनाना परम आवश्यक है, अन्यथा मिथ्यात्व के दोष के कारण उसे अनन्त दुःख से छुटकारा मिलेगा ही नहीं।
दूसरा, पंचाध्यायी शास्त्र में इसके अतिरिक्त भी इसी बात को पुष्ट करनेवाले अनेक श्लोक हैं परन्तु विस्तार भय के कारण अब हम विशेष महत्त्व के श्लोक ही देखेंगे; विस्तार रुचिवालों को इस शास्त्र का पूर्ण रूप से अभ्यास करना चाहिये।
श्लोक ३०३ : अन्वयार्थ :- ‘जो सत् विधि रूप (अन्वय रूप, ध्रुव रूप, सामान्य रूप, द्रव्य रूप) अथवा निषेध रूप (अर्थात् व्यतिरेक रूप-उत्पादव्यय रूप-विशेष रूप-पर्याय रूप) भी कहा है, वही सत् (वस्तु = द्रव्य) यहाँ परस्पर की अपेक्षा से किसी एक में कोई दूसरा गर्भित हो जाने से कहा जा सकता है अर्थात् परस्पर सापेक्ष होने से एक-दूसरे में गर्भित हो जाता है।'
निषेध रूप पर्याय है। वह विधि रूप ध्रुव की ही बनी है। इसलिये वे दोनों एक-दूसरे में