Book Title: Samyag Darshan Ki Vidhi
Author(s): Jayesh Mohanlal Sheth
Publisher: Shailendra Punamchand Shah

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Page 238
________________ 232 सम्यग्दर्शन की विधि रात्रि भोजन के सम्बन्ध में रात्रि भोजन का त्याग मोक्ष मार्ग के पथिक के लिये तो आवश्यक है ही परन्तु उसके आधुनिक विज्ञान-अनुसार भी अनेक लाभ हैं। जैसे कि रात्रि नौ बजे शरीर की घड़ी (body clock) के अनुसार पेट में रहे हुए विष तत्त्वों की सफ़ाई का (detoxification) समय होता है। तब पेट यदि भरा हुआ हो तो शरीर वह कार्य नहीं करता अर्थात् पेट में कचरा बढ़ता है। जो रात्रि भोजन नहीं करते, उनका पाचन नौ बजे तक में हो जाने से उनका शरीर विष तत्त्वों की सफाई का कार्य भली प्रकार से कर सकता है। दसरा रात्रि में भोजन के पश्चात् दो से तीन घण्टे तक सोना निषिद्ध है और इसलिये जो रात्रि में देर से भोजन करते हैं, वे देर से सोते हैं। रात्रि में ग्यारह से एक बजे के दौरान गहरी नींद (deep sleep) लीवर की सफ़ाई और उसकी नुक़सान भरपाई (cell regrowth) के लिये अत्यन्त आवश्यक है। यह रात्रि भोजन करनेवाले के लिये शक्य ही नहीं है। इसलिये यह भी रात्रि भोजन का बड़ा नुक़सान है। आरोग्य की दृष्टि से इसके अतिरिक्त भी रात्रि भोजन त्याग के दसरे अनेक लाभ हैं। आयुर्वेद, योगशास्त्र और जैनेतर दर्शनों के अनुसार भी रात्रि भोजन निषिद्ध है। जैनेतर दर्शन में तो रात्रि भोजन को मांस खाने के समान और रात्रि में पानी पीने को खून पीने के समान बतलाया है। रात्रि भोजन करनेवाले के तप-जप-यात्रा सब व्यर्थ होते हैं और रात्रि भोजन का पाप सैकड़ों चन्द्रायतन तप करने से भी नहीं धुलता - ऐसा बतलाया है। ___ जैन दर्शन ने रात्रि भोजन को बहुत बड़ा पाप बतलाया है। यहाँ कोई यदि ऐसा कहे कि रात्रि भोजन त्याग इत्यादि व्रत अथवा प्रतिमाएँ तो सम्यग्दर्शन के बाद ही होती हैं तो हमें इस रात्रि भोजन का क्या दोष लगेगा? तो उन्हें हमारा उत्तर है कि रात्रि भोजन का दोष सम्यग्दृष्टि की अपेक्षा मिथ्या दृष्टि को अधिक ही लगता है। क्योंकि मिथ्या दृष्टि उसे रच-पच कर सेवन करता है, जबकि सम्यग्दृष्टि तो आवश्यक न हो, अनिवार्य न हो तो ऐसे दोषों का सेवन ही नहीं करता। यदि किसी काल में ऐसे दोषों का सेवन करता है तो भी भीरु भाव से और रोग की औषधि रूप से करता है; न कि आनन्द से अथवा स्वच्छन्दता से। इस कारण किसी भी प्रकार का छल धर्म शास्त्रों में से ग्रहण नहीं करना क्योंकि धर्म शास्त्रों में प्रत्येक बात अपेक्षा से होती है। इसलिये व्रत और प्रतिमाएँ पंचम गुणस्थान में कही हैं, उसका अर्थ ऐसा नहीं निकालना कि अन्य कोई निम्न भूमिकावाला उसे अभ्यास के लिये अथवा पाप से बचने के लिये ग्रहण नहीं कर सकता। रात्रि भोजन त्याग सभी के लिये अवश्य ग्रहण करने योग्य है, क्योंकि जिसे द:ख प्रिय नहीं है - ऐसे जीव, द:ख के कारण रूप पापों का किस प्रकार आचरण कर सकते हैं? अस्तु

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