Book Title: Ashtak Prakaran
Author(s): Haribhadrasuri, 
Publisher: Ashapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar

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Page 19
________________ १८ श्री अष्टक प्रकरण अतिश्रेष्ठ भी नहीं हैं तथा पौरुषघ्नी भिक्षा के समान अतिदुष्ट भी नहीं हैं । कारण कि निर्धन आदि जीव अनुकंपा के योग्य होने से (जैन) धर्म की लघुता (अवहेलना ) में कारण नहीं बनते हैं । दातॄणामपि चैताभ्यः, फलं क्षेत्रानुसारतः । विज्ञेयमाशयाद्वापि, स विशुद्धः फलप्रदः ॥८॥ अर्थ - यति आदि तीन प्रकार के भिक्षुकों को भिक्षा देनेवालों को क्षेत्र - पात्र, देय-वस्तु, काल आदि के अपने आशय के अनुसार दान का फल मिलता हैं । सर्व कारणों में आशय मुख्य कारण हैं भिक्षा देने में विशुद्ध आशय विशिष्ट प्रकार का फल देता हैं। T

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