Book Title: Ashtak Prakaran
Author(s): Haribhadrasuri, 
Publisher: Ashapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar

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Page 25
________________ श्री अष्टक प्रकरण व्यापार को तिलांजलि देकर जीवन पर्यंत यथाशक्ति आदरपूर्वक शास्त्रार्थ - शास्त्राज्ञा का पालन करना चाहिए । एवं ह्युभयथाप्येतद्, दुष्टं प्रकटभोजनम् । यस्मान्निदर्शितं शास्त्रे, ततस्त्यागोऽस्य युक्तिमान् ॥८॥ अर्थ - इस प्रकार प्रकट भोजन दीन आदि को देने पर भी दोष लगता हैं और नहीं देने पर भी । इस प्रकार दोनों प्रकार से दोष बताया गया हैं । इससे मुमुक्षु के द्वारा प्रकट भोजन का त्याग करना यही युक्तियुक्त हैं । २४

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