Book Title: Ashtak Prakaran
Author(s): Haribhadrasuri, 
Publisher: Ashapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar

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Page 57
________________ श्री अष्टक प्रकरण अर्थ - यहां मैं जिसके मांस का भक्षण करता हूं। वह परलोक में मेरा भक्षण करेगा। यह मांस शब्द का सत्य अर्थ हैं । ऐसा बुद्धिमान कहते हैं। इत्थं जन्मैव दोषोऽत्र, न शास्त्राद् बाह्यभक्षणम् । प्रतीत्यैष निषेधश्च, न्याय्यो वाक्यान्तराद् गतेः ॥४॥ अर्थ - (इत्थं) जन्मैव दोषोऽत्र - इस प्रकार जिसके मांस का भक्षण किया हो उसका भक्ष्य रूप में जन्म हो, यही मांसभक्षण में दोष हैं । प्रोक्षितं भक्षयेन्मांसं, ब्राह्मणानां च काम्यया । यथाविधि नियुक्तस्तु, प्राणानामेव वाऽत्यये ॥५॥ अर्थ - १. वैदिक मंत्रों से प्रोक्षण नामक संस्कार से युक्त मांस का भक्षण करना चाहिए । २. ब्राह्मणों की इच्छा से (एकबार) मांस खाना चाहिए । ३. श्राद्ध तथा मधुपर्क में विधिपूर्वक जुड़े मनुष्य को अवश्य मांसभक्षण करना चाहिए। ४. मांसभक्षण बिना प्राणों का रक्षण न हो सके, ऐसी परिस्थिति में भी मांसभक्षण करना चाहिए । अत्रैवासावदोषश्चेन्निवृत्तिर्नास्य सज्यते । अन्यदाऽभक्षणादत्राऽभक्षणे दोषकीर्तनात् ॥६॥ अर्थ - (अत्रैवासावदोषश्चेद्) - शास्त्र-विहित मांसभक्षण में ही दोष नहीं हैं (शास्त्रबाह्य मांसभक्षण में ही दोष हैं) ऐसा तुम मानते हो तो एक आपत्ति आती हैं।

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