Book Title: Ashtak Prakaran
Author(s): Haribhadrasuri, 
Publisher: Ashapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar

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Page 101
________________ १०० श्री अष्टक प्रकरण भगवंत ही कर सकते हैं । अन्य तो उसके स्वरूप को मात्र सुन सकते हैं, जान सकते हैं, वह भी संपूर्णतया तो नहीं । कारण कि मोक्ष सुख को कहने के लिए दृष्टान्त ही न होने से मोक्षसुख का व्यक्त (प्रकट) वर्णन नहीं किया जा सकता । अष्टकाख्यं प्रकरणं, कृत्वा यत्पुण्यमर्जितम् । विरहात्तेन पापस्य, भवन्तु सुखिनो जनाः ॥१०॥ अर्थ पुण्य से सर्व लोग पापों से मुक्त बनकर सुखी बनें । अष्टक नामक प्रकरण की रचना कर उपार्जित —

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