Book Title: Ashtak Prakaran
Author(s): Haribhadrasuri, 
Publisher: Ashapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar

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Page 55
________________ श्री अष्टक प्रकरण चाहिए। ऐसा बोलने में ही विद्वत्ता हैं । शास्त्र और लोक से निरपेक्ष बोलना पागलपन हैं । ५४ शास्त्रे चाप्तेन वोऽप्येतन्निषिद्धं यत्नतो ननु । लङ्कावतारसूत्रादौ ततोऽनेन न किञ्चन ॥८॥ , अर्थ - लंकावतार आदि तुम्हारे शास्त्र में भी बुद्ध ने मांसभक्षण का आदरपूर्वक निषेध किया हैं । इससे तुम्हारे द्वारा किया हुआ मांसभक्षण का समर्थन निष्प्रयोजन हैं । I

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