Book Title: Ashtak Prakaran
Author(s): Haribhadrasuri, 
Publisher: Ashapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar

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Page 48
________________ श्री अष्टक प्रकरण (अनादि काल से) होगी । न च सन्तानभेदस्य, जनको हिंसको भवेत् । सांवृतत्वान्न जन्यत्वं, यस्मादस्योपपद्यते ॥४॥ अर्थ - संतानभेद का मनुष्यादि क्षण प्रवाह विशेष का जनक हिंसक नहीं बनता । कारण कि संतान-क्षणप्रवाह सांवृत-काल्पनिक होने से जन्य ही नहीं हैं । जो वस्तु जन्य न हो - उत्पन्न न होती हो उसका जनक - उत्पन्न करनेवाला कहाँ से होगा ! अब जो संतान का जनक ही नहीं, तो संतान का जनक हिंसक बनता हैं, यह बात ही कहाँ रही ! T — ४७ न च क्षणविशेषस्य, तेनैव व्यभिचारतः । तथा च सोऽप्युपादान भावेन जनको मतः ॥ ५ ॥ अर्थ - क्षणविशेष का - मनुष्यादि क्षण का जनक हिंसक हैं ऐसा भी नहीं माना जा सकता । कारण कि हिरण का अन्त्य क्षण मनुष्य के क्षण का जनक होने पर भी हिंसक नहीं हैं। जैसे मनुष्यक्षण का जनक शिकारी हैं, वैसे ही हिरण का अन्त्य लक्षण भी उपादानभाव से उपादान कारण रूप में (परिणामी कारण रूप में) जनक हैं । किन्तु वह हिंसक नहीं हैं । [ जनक को हिंसक मानने पर उपादान क्षण को भी हिंसक रूप में मानना पड़ता हैं ।] — तस्यापि हिंसकत्वेन, न कश्चित्स्यादहिंसकः । जनकत्वाविशेषेण, नैवं तद्विरतिः क्वचित् ॥६॥ उपादान क्षण को भी हिंसक मानें तो कोई भी अहिंसक

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