Book Title: Ashtak Prakaran
Author(s): Haribhadrasuri, 
Publisher: Ashapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar

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Page 49
________________ ४८ श्री अष्टक प्रकरण नहीं रहता। कारण कि प्रत्येक पदार्थ अनंतर क्षण का उपादान क्षण बनने से जनक रूप में समान हैं। इस प्रकार अमुक जनक ही हिंसक हैं ऐसे विशेष के बिना कोई भी जनक हिंसक हैं, इस प्रकार जनक सामान्य को हिंसक रूप में स्वीकारने से, कभी भी, किसी भी व्यक्ति की, कहीं पर भी, किसी भी अवस्था में हिंसा की निवृत्ति नहीं होगी ! उपन्यासश्च शास्त्रेऽस्याः, कृतो यत्नेन चिन्त्यताम् । विषयोऽस्य यमासद्य, हन्तैष सफलो भवेत् ॥७॥ अर्थ - शास्त्र में अहिंसा का उल्लेख किया गया हैं। शास्त्र में किये गये अहिंसा संबंधी उल्लेख के विषय को आदरपूर्वक विचार करें । जिससे शास्त्र में किया गया अहिंसा का उल्लेख सफल-सार्थक बने । यदि अहिंसा का अभाव ही हो तो शास्त्र में उसका उल्लेख निरर्थक बनेगा । अभावेऽस्या न युज्यन्ते, सत्यादीन्यपि तत्त्वतः । अस्याः संरक्षणार्थं तु, यदेतानि मुनिर्जगौ ॥८॥ अर्थ - अहिंसा के अभाव में सत्यादि धर्म-साधन भी परमार्थ से नहीं माने जाते । कारण कि मुनि-जिनेश्वरों ने अहिंसा की रक्षा के लिए ही सत्य आदि धर्म-साधन कहे हैं । (यदि अहिंसा ही न होगी तो फिर इसके रक्षण के साधनों की भी क्या आवश्यकता ! क्या धान्य से रहित खेत में वाड़ बनाने की जरूरत हैं ? कभी नहीं !)

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