Book Title: Ashtak Prakaran
Author(s): Haribhadrasuri, 
Publisher: Ashapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar

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Page 28
________________ श्री अष्टक प्रकरण २७ वीर्यान्तराय कर्म के उदय से प्रबल वीर्योल्लास के अभाव में खंडित होता हैं, वह भी द्रव्य प्रत्याख्यान हैं, इस प्रकार तत्त्वज्ञों ने कहा हैं। एतद्विपर्ययाद् भाव - प्रत्याख्यानं जिनोदितम् । सम्यक्चारित्ररूपत्वान्नियमान्मुक्तिसाधनम् ॥७॥ अर्थ - द्रव्य प्रत्याख्यान से विपरीत (अपेक्षा आदि से रहित) प्रत्याख्यान भाव प्रत्याख्यान हैं । ऐसा जिनेश्वरों ने कहा हैं । भाव प्रत्याख्यान सम्यक्चारित्र रूप होने से अवश्य साक्षात् अथवा परंपरा से मुक्ति का कारण हैं । जिनोक्तमिति सद्भक्त्या, ग्रहणे द्रव्यतोऽप्यदः । बाध्यमानं भवेद् भाव-प्रत्याख्यानस्य कारणम् ॥८॥ ___ अर्थ - अपेक्षा आदि से ग्रहण किया हुआ द्रव्य प्रत्याख्यान भी 'यह प्रत्याख्यान जिनेश्वरों ने कहा हैं। इस प्रकार के सुंदर बहुमान से बाधित (अपेक्षा आदि दूर) होने पर भाव प्रत्याख्यान का कारण बनता हैं ।

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