Book Title: Ashtak Prakaran
Author(s): Haribhadrasuri, 
Publisher: Ashapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar

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Page 43
________________ ४२ श्री अष्टक प्रकरण ___ यदि अन्य प्रत्यक्ष आदि किसी प्रमाण से निर्णय कर लक्षण कहा जाये तो प्रश्न होता हैं कि - जिस प्रमाण से प्रस्तुत प्रमाण के लक्षण का निर्णय किया हैं वह प्रमाण उसके लक्षण से निर्णीत हैं या अनिर्णीत ? तस्माद् यथोदित्तं वस्तु, विचार्य रागवर्जितैः । धर्माथिभिः प्रयत्नेन, तत इष्टार्थसिद्धितः ॥८॥ अर्थ - प्रमाण आदि के लक्षण की चर्चा निष्प्रयोजन होने से, स्वदर्शन के पक्षपात से (और परदर्शन के द्वेष से) रहित धर्मार्थी के द्वारा पूर्व में (तीसरे श्लोक में) कहे अनुसार अहिंसा आदि धर्मसाधनों की आदरपूर्वक चर्चा करनी चाहिए । कारण कि इससे इष्ट अर्थ की (धर्म की और परंपरा से मोक्ष की प्राप्ति होती है।

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