Book Title: Ashtak Prakaran
Author(s): Haribhadrasuri, 
Publisher: Ashapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar

View full book text
Previous | Next

Page 80
________________ श्री अष्टक प्रकरण २६. अथ महादानस्थापनाष्टकम् ७९ जगद्गुरोर्महादानं, सङ्ख्यावच्चेत्यसङ्गतम् । शतानि त्रीणि कोटीनां, सूत्रमित्यादि चोदितम् ॥१॥ अन्यैस्त्वसङ्ख्यमन्येषां, स्वतन्त्रेषूपवर्ण्यते । तत्तदेवेह तद्युक्तं, महच्छब्दोपपत्तितः ॥२॥ ततो महानुभावत्वात्, तेषामेवेह युक्तिमत् । जगद्गुरुत्वमखिलं, सर्वं हि महतां महत् ॥३॥ अर्थ - तीर्थंकर का दान महादान हैं और संख्यावाला (परिमित) हैं यह असंगत हैं । महादान और संख्यावाला यह किस प्रकार संभवित हैं । तीर्थंकर ३८८ करोड़ और ८० लाख सुवर्ण का दान देते हैं, ऐसा शास्त्र में कथित होने से तीर्थंकर का दान संख्यावाला हैं, यह निश्चित हैं । बौद्ध अपने शास्त्र में बोधिसत्त्वों के दान को असंख्य (अपरिमित) कहते हैं । अतः बोधिसत्त्व का ही दान महादान हैं, यह संगत हैं । कारण कि वह दान असंख्य होने से उसीमें महान शब्द का प्रयोग किया जा सकता हैं । बोधिसत्त्वों का दान महादान होने से वे ही महानुभाव है और संपूर्णतया जगद्गुरु है, यह संगत हैं । महापुरुषों का सब कुछ महान होता हैं । I

Loading...

Page Navigation
1 ... 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102