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श्री अष्टक प्रकरण
२६. अथ महादानस्थापनाष्टकम्
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जगद्गुरोर्महादानं, सङ्ख्यावच्चेत्यसङ्गतम् । शतानि त्रीणि कोटीनां, सूत्रमित्यादि चोदितम् ॥१॥
अन्यैस्त्वसङ्ख्यमन्येषां, स्वतन्त्रेषूपवर्ण्यते । तत्तदेवेह तद्युक्तं, महच्छब्दोपपत्तितः ॥२॥ ततो महानुभावत्वात्, तेषामेवेह युक्तिमत् । जगद्गुरुत्वमखिलं, सर्वं हि महतां महत् ॥३॥
अर्थ - तीर्थंकर का दान महादान हैं और संख्यावाला (परिमित) हैं यह असंगत हैं । महादान और संख्यावाला यह किस प्रकार संभवित हैं । तीर्थंकर ३८८ करोड़ और ८० लाख सुवर्ण का दान देते हैं, ऐसा शास्त्र में कथित होने से तीर्थंकर का दान संख्यावाला हैं, यह निश्चित हैं ।
बौद्ध अपने शास्त्र में बोधिसत्त्वों के दान को असंख्य (अपरिमित) कहते हैं । अतः बोधिसत्त्व का ही दान महादान हैं, यह संगत हैं । कारण कि वह दान असंख्य होने से उसीमें महान शब्द का प्रयोग किया जा सकता हैं ।
बोधिसत्त्वों का दान महादान होने से वे ही महानुभाव है और संपूर्णतया जगद्गुरु है, यह संगत हैं । महापुरुषों का सब कुछ महान होता हैं ।
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