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श्री अष्टक प्रकरण
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अर्थ - इससे १. जो अल्पकाल में मोक्ष जानेवाला हो, २. स्वाभाविक रीति से जिसका मन शुद्ध हो, ३. जो गुणों के स्थान रूप आचार्यादि को तथा उनके मान-पूजा के अंतर को जानते हो, अर्थात् आचार्य में अमुक गुण हैं, उपाध्याय में अमुक गुण हैं, इस प्रकार गुणों के स्थान आचार्य, उपाध्याय आदि को जानता हैं तथा उपाध्याय की अमुक प्रकार से पूजा करनी उचित हैं तथा उपाध्याय की पूजा से जो लाभ हो उससे आचार्य की पूजा से अधिक लाभ होता हैं, इस प्रकार स्वरूप और फल की दृष्टि से आचार्यादि की पूजा के अंतर को जानता हैं । ४. जिसका गुणी पुरुषों के प्रति बहुमान हो, ५. जो विहित अनुष्ठानों में यथायोग्य प्रवृत्ति करता हो, ६. कदाग्रह का त्यागकर सर्वत्र आगम को अत्यंत प्रमाण मानता हो, इस प्रकार के जीव की भावशुद्धि पारमार्थिक हैं । ऐसी भावशुद्धि से धर्मव्याघात नहीं होता ।