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श्री अष्टक प्रकरण
१९. अथ मद्यपानदूषणाष्टकम्
मद्यं पुनः प्रमादाङ्ग, तथा सच्चित्तनाशनम् । सन्धानदोषवत्तत्र, न दोष इति साहसम् ॥१॥
अर्थ - मद्य प्रमाद का कारण हैं । शुभ चित्त का नाशक हैं । मद्य में संधान के समान जीवसंसक्तिजीवोत्पत्ति वगैरह अनेक दोष हैं। (ऐसे मद्यपान में दोष नहीं हैं) ऐसा कहना यह धृष्टता हैं।
किं वेह बहुनोक्तेन, प्रत्यक्षेणैव दृश्यते । दोषोऽस्य वर्तमानेऽपि, तथा भण्डन-लक्षणः ॥२॥
अर्थ - मद्यपान के दूषणों के बारे में ज्यादा कहने से क्या ? मद्यपान से वर्तमान में भी असभ्य भाषण, मार-पीट आदि दोष प्रत्यक्ष देखे जाते हैं ।
श्रूयते च ऋषिर्मद्यात्, प्राप्तज्योतिर्महातपाः । स्वर्गाङ्गनाभिराक्षिप्तो, मूर्खवन्निधनं गतः ॥३॥ कश्चिदृषिस्तपस्तेपे, भीत इन्द्रः सुरस्त्रियः । क्षोभाय प्रेषयामास, तस्यागत्य च तास्तकम् ॥४॥ विनयेन समाराध्य, वरदाऽभिमुखं स्थितिम् । जगुर्मद्यं तथा हिंसां, सेवस्वाब्रह्म वेच्छया ॥५॥