Book Title: Ashtak Prakaran
Author(s): Haribhadrasuri, 
Publisher: Ashapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar

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Page 85
________________ श्री अष्टक प्रकरण अर्थ - 'जो दान की प्रशंसा करते हैं....' इत्यादि सूयगडांग का सूत्र अवस्थाविशेष - अपुष्ट आलंबन का आश्रय कर कहा गया हैं । ऐसा सज्जनों को समझना चाहिए । ८४ एवं न कश्चिदस्यार्थस्तत्वतोऽस्मात्प्रसिध्यति । अपूर्व: किन्तु तत्पर्व - मेवं कर्म प्रहीयते ॥८ ॥ अर्थ - इस प्रकार - तीर्थंकरों का उस प्रकार का कल्प ( आचार) होने से, दान के द्वारा परमार्थ से तीर्थंकरों का नया कोई प्रयोजन सिद्ध नहीं होता, बल्कि पूर्व में बद्ध तीर्थंकर नामकर्म का क्षय होता हैं ।

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