Book Title: Ashtak Prakaran
Author(s): Haribhadrasuri, 
Publisher: Ashapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar

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Page 73
________________ ७२ श्री अष्टक प्रकरण अत उन्नतिमाप्नोति, जातौ जातौ हितोदयाम् । क्षयं नयति मालिन्यं, नियमात्सर्ववस्तुषु ॥८ ॥ अर्थ इस शासन प्रभावना से जीव प्रत्येक भव में कल्याण की अनुबंधवाली उन्नति पाता हैं और अवश्य सर्व वस्तुओं में दूषणों का क्षय होता हैं, अर्थात् जाति, बुद्धि आदि सर्वभाव हीनता आदि दूषणों से रहित उत्तम प्रकार के प्राप्ति होते हैं । [ तत्तथा शोभनं दृष्ट्वा, साधु शासनमित्यदः । प्रतिपद्यन्ते तदैवेके, बीजमन्येऽस्य शोभनम् ॥४॥ अर्थ - शासनप्रभावना हो वैसे विशिष्ट उदारतादिपूर्वक उच्च प्रकार के पूजादि अनुष्ठानों को देखकर "जैन शासन सुंदर है" ऐसी प्रशंसा से कई जीव उसी समय सम्यक्त्व करते को प्राप्त । कई जीव सम्यक्त्व के अवन्ध्य बीज को प्राप्त करते हैं। सामान्येनापि नियमाद् वर्णवादोऽत्र शासने । कालान्तरेण सम्यक्त्व हेतुतां प्रतिपद्यते ॥५॥ अर्थ इस शासन के संबंध में सामान्य से भी वर्णवाद – “जैनशासन भी सुंदर हैं" ऐसी प्रशंसा अवश्य भविष्य में सम्यक्त्व का कारण हैं । —

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