Book Title: Ashtak Prakaran
Author(s): Haribhadrasuri, 
Publisher: Ashapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar

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Page 34
________________ श्री अष्टक प्रकरण ३३ आदि के त्याग के लिए उद्यम करना अर्थात् सर्वविरति की प्राप्ति हो, इसके लिए उद्यम करना और इच्छा आदि का सर्वथा त्याग करना अर्थात् सर्वविरति का स्वीकार करना, यह सद्ज्ञान संगत-ज्ञान गर्भित वैराग्य हैं । एतत्तत्व परिज्ञानान्नियमेनोपजायते । यतोऽतः साधनं सिद्धे-रेतदेवोदितं जिनैः ॥८॥ अर्थ - तत्व के परिज्ञान से आत्मा आदि वस्तु के वास्तविक स्वरूप को जानने से ही यह ज्ञानगर्भित वैराग्य होता हैं । इससे यह वैराग्य ही सिद्धि का साधन हैं, ऐसा जिनेश्वरों ने कहा हैं ।

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