Book Title: Ashtak Prakaran
Author(s): Haribhadrasuri, 
Publisher: Ashapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar

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Page 99
________________ श्री अष्टक प्रकरण अर्थ - मोक्ष में अन्न-पान आदि के भोगों का अभाव होने से सिद्धों को सुख नहीं हो सकता, ऐसा कोई कहता हैं। उससे पूछना चाहिए कि भाई ! अन्न-पानादि का भोग किसलिए करना हैं ? क्षुधा आदि की निवृत्ति के लिए ही न ? तो अब कहो कि क्षुधा आदि की निवृत्ति करने की क्या आवश्यकता ? यहाँ तुमको कहना ही पड़ेगा कि स्वास्थ्य प्राप्त करने के लिए क्षुधादि की निवृत्ति करनी पड़ती हैं । क्षुधादि उत्पन्न होते ही अस्वस्थता उत्पन्न होती हैं । क्षुधा आदि जब तक दूर न हो तब तक अस्वस्थता दूर नहीं होती । इससे स्वास्थ्य प्राप्ति के लिए क्षुधादि की निवृत्ति करने की जरूरत पड़ती हैं । अब इसका मतलब यह निकला कि जिसको क्षुधादि न हो उसको अस्वस्थता न होगी, स्वस्थता ही होगी, इससे अन्न-पान आदि भोग की जरूरत न पड़ेगी। कर्म के उदय से क्षुधादि उत्पन्न होते हैं। सकल कर्मों से मुक्त सिद्धों को क्षुधा आदि न होने से सदा स्वास्थ्य ही होता हैं। ९८ अस्वस्थ को ही दवा दी जाती हैं, स्वस्थ को नहीं । वैसे ही सिद्धों को सर्वोच्च कोटि का स्वास्थ्य होने से अन्नादि का भोग निरर्थक हैं । उनको मोह का अभाव होने

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