Book Title: Ashtak Prakaran
Author(s): Haribhadrasuri, 
Publisher: Ashapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar

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Page 95
________________ श्री अष्टक प्रकरण संपूर्ण अलोक में जा ही नहीं सकता। अतः यदि केवलज्ञान ज्ञेय पदार्थ के पास जाकर प्रकाशित करता हैं, ऐसा मानें तो केवलज्ञान अलोक प्रकाशक न बनेगा। ३. तथा 'विभुर्न च' आत्मा - आत्मा सर्वगत भी नहीं हैं। आत्मा सर्वगत हो तो केवलज्ञान आत्मस्थ ही रहकर वस्तु का स्पर्श कर प्रकाशित करे । किन्तु वैसा नहीं हैं । शरीर में ही चैतन्य की उपलब्धि होने से आत्मा शरीर प्रमाण हैं अर्थात् केवलज्ञान शरीर-प्रमाण आत्मा में रहकर लोकालोक प्रकाशक हैं।

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