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श्री अष्टक प्रकरण चौरोदाहरणादेवं प्रतिपत्तव्यमित्यदः । कौशाम्ब्यां स वणिग्भूत्वा, बुद्ध एकोऽपरो न तु ॥६॥
अर्थ - जैनशासन की प्रशंसा भविष्य में सम्यक्त्व का कारण बनती हैं, ऐसा चोर के उदाहरण से जाना जा सकता हैं। जैनशासन की प्रशंसा करनेवाला चोर कोशांबी नगरी में वणिक् रूप में उत्पन्न होकर सम्यक्त्व को प्राप्त हुआ । जबकि अन्य - उसके मित्र ने सम्यक्त्व नहीं पाया ।
इति सर्वप्रयत्नेनोपघातः, शासनस्य तु । प्रेक्षावता न कर्त्तव्य आत्मानो हितमिच्छता ॥७॥ कर्त्तव्या चोन्नतिः सत्यां, शक्ताविह नियोगतः । प्रधानं कारणं ह्येषा, तीर्थकृन्नाम कर्मणः ॥८॥
अर्थ - इससे आत्महित को चाहनेवाले बुद्धिमान पुरुष को किसी भी प्रकार से शासन की अवहेलना नहीं करनी चाहिए, और शक्ति हो तो अवश्य जैनशासन की प्रभावना करानी चाहिए । कारण कि जैनशासन की प्रभावना तीर्थंकर नामकर्म के बंध का प्रधान कारण हैं ।]