Book Title: Ashtak Prakaran
Author(s): Haribhadrasuri, 
Publisher: Ashapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar

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Page 65
________________ ६४ श्री अष्टक प्रकरण समस्त रूई जलकर भस्म हो जाती हैं वैसे ही मैथुन सेवन से स्त्री की योनि में स्थित जीव नष्ट हो जाते हैं। मूलं चैतदधर्मस्य, भवभावप्रवर्धनम् । तस्माद्विषान्नवत्याज्य-मिदं मृत्युमनिच्छता ॥८॥ अर्थ - मैथुन अधर्म का मूल होने से संसार-भाव को बढ़ानेवाला हैं। इससे (संसार नहीं चाहनेवाला जीव) मरण नहीं चाहनेवाला जीव विषमिश्रित अन्न का त्याग करता हैं वैसे ही मैथुन का भी त्याग करना चाहिए ।

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