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दादागुरु देव पूजा संग्रह पट्ट उनके धीर निर्भय, अभयदेवाचार्य वर । नव अंग टीकाकार तीरथ, पास थंभण प्रकट कर ॥
उनके शरण अभय वरदान वरो । गुरु०॥ ७॥ उनके विशद पद गगन में, रवि सम तमो नाशक महा। कवि वीर जिनवल्लभ सुजस, जिनका जगत में हो रहा ॥
उनका सुजश सदा मुख से उचरो । गुरु० ॥८॥ पाखण्ड खण्डन के लिये, सामर्थ्य जो पुरा धरें। हैं संघपट्टक आदि जिनके, ग्रन्थ तत्वों से भरे ॥
पढ के तत्वरमणता, नित्य करो । गुरु० ॥६॥ प्रख्यात उनके आज भी, जिनदत्तसरि राज हैं। अतिशय भरे अवदातमय, जो भव्यजन सरताज हैं।
दादा नाम सुपावन याद करो । गुरु० ॥१०॥ दादा गुरु सुख सिन्धु हैं, भगवान हैं आधार हैं। गुरु के चरण प्रक्षालते, "हरि" होत भव जल, पार हैं। यातें प्रथम विमलजल पूजा करो । गुरु० ॥ ११ ॥
श्लोकसत्त्यामृताय सरसात्मपदाय मूलात्
तृष्णादि-दोष दलनाय मलक्षयाय । तत्तद्गुणेन विमलेन जलेन भक्त्या,
दादोपसंज्ञ जिनदत्तगुरुं यजेऽहम् ॥
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