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चतुर्थ दादागुरु देव पूजा
(तर्ज-प्रभु धर्मनाथ मोहे प्यारा, जगजीवन मोहनगारा )
(राग-बनझारा ) जिनचन्द्र गुरु जयकारी, नित पूजो जग उपकारी । गुण ज्ञान-क्रिया-अविकारी,निज जीवन विकसित कारी।।टे।। गुरु जेशलमेर विराजें, गणनायक पद-गुण ताजे । सोलह सो बारह-साले, चौमासा धर्म-प्रचारी ।।
जिन चन्द्र गुरु जयकारी० ॥ १ ॥ वच्छावत सिंह संग्रामा, मन्त्री विनती गुणधामा । गुरु बीकानेर पधारे, उत्सव के ठाठ अपारी ॥
जिन चन्द्र गुरु जयकारी० ॥२॥ मन्त्री घुडशाला भारी, गुरु संयम शुद्धाचारी । मत्थेरण शिथिलाचारी, गुरु साधु क्रिया सुधारी ॥
जिन चन्द्र गुरु जयकारी० ॥ ३ ॥ गुरु महेवा में चौमासी, तपस्या होवे छम्मासी॥ जिन शासन जगति प्रकाशे, गुरु योग-तपोबलधारी ॥
जिनचन्द्र गुरु जयकारी० ॥ ४ ॥ ग्रामानुग्राम विहारे, गुरु पाटण नगर पधारे। वहां सागर चर्चाकारी, विजयी गुरु जय विस्तारी॥
जिनचन्द्र गुरु जयकारी० ॥ ५ ॥
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