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प्रथम दादागुरु देव पूजा सुविहित आचार को पालें जो,
फरमा दिया दत्तसूरीश्वर ने । मिथ्या०॥७॥ न विषधर का ताप नहीं,
होगा चन्दन पूजा रचते । "हरि" पूज्य हुए पूजा करते,
उपदेशा दत्तसूरीश्वर ने ॥ मिथ्या०॥८॥
श्लोकदुःखोपताप हरणाय महद्गुणाय,
यद्वा द्विजिह्व कृतदोषनिवारणाय । सच्चन्दन-प्रवर-पुण्यरसेन श्रीमद्
दादोपसंज्ञजिनदत्तगुरु यजेऽहम् ॥
ॐ ही श्री अर्ह परम पुरुषाय परम गुरुदेवाय भगवते
जिनशासनोद्दीपकाय दादा श्रीजिनदत्त सूरीश्वराय चन्दनं यजामहे स्वाहा ।
३-पुष्प पूजा।
दूहासुमनस् सद्गुरु सेवना, सुमनस् शिवको देत । सुमनस् भविजन कीजिये, सुमनस्-पद संकेत ।।
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