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दादागुरु देव पूजा संग्रह विक्रम तेरह–संतीसा में
लगन घड़ी शुभ पुण्य दिशा में, जन्म सुपाने वाले गुरु को लाखों प्रणाम ॥६॥
बालक पन में पुण्य प्रभावे,
व्यवहारिक गुण ज्ञान उपावे, कुशल नाम अभिरामी गुरु को लाखों प्रणाम ॥ ७ ॥
पुण्यवान् गुणवान् सुनिर्भय,
सुख सागर भगवान महोदय, मार्ग बताने वाले गुरु को लाखों प्रणाम ।। ८ ।।
विशद भाव जल जीवन धारा,
'जिन हरि' पूजो नित अविकार, पूज्य कुशल पदवाले गुरु को लाखों प्रणाम ॥ ६ ॥
(काव्यम्) यः पाप---संताप-मलापहारी,
दादा-भिधानः कुशलाख्य-मूरिः। तत्पाद-पद्म-द्वितीयं नमामि,
जलेन भक्त्या स्नपयामि नित्यम् ।।
मंत्रॐ ह्रीं श्रीं अर्ह परम पुरुषाय परम गुरुदेवाय भगवते जिन शासनोद्दीपकाय श्रीजिनकुशल
सूरीश्वराय जलं यजामहे स्वाहा ।
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