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द्वितीय दादागुरु देव पूजा एक दिनां जिनदत्तसूरीश्वर, 'चर्चरी' ग्रंथ महान् । धर्म प्रचार विचार से भेजें, पढ़ते भविगुवान् रे ॥
सद्गुरु मणियाले० ॥३॥ देवधरादिक बोध को पाकर, छोड़ कुगुरु कुसंग । सद्गुरु का चौमासा करावे, धर सत्संग उमंग रे॥
सद्गुरु मणियाले० ॥४।। दादा दत्त की सत्य कथा सुन, रासल नंदन बाल । गुरु सतसंगो संयम रंगी, पावें ज्ञान-विशाल रे॥
सद्गुरु मणियाले ॥५॥ देख सपूत सुलक्षण सद्गुरु. मात पिता प्रतिबोध । साथ विहारी दीक्षा शिक्षा, नित देते अविरोध रे ॥
सद्गुरु मणियाले ॥६॥ बारह सो पर तीन सुसंवत, धन्य घड़ी धन योग । फागुन सुद नवमी रासलसुत, लें संयम सुख-भोग रे ।।
सद्गुरु मणियाले० ॥ ७ ॥ पद वर्षन के संयम धारी, अविकारी अवतार । धन्य गुरु धन्य ऐसे चेले, लोक करें जयकार रे ॥
सद्गुरु मणियाले० ॥ ८ ॥ सुखसागर में लीन गुरु, भगवान की सेवा-धार । चंदन शीतल शांत-सुभावी, अनुपम गुण भण्डार रे ॥
सद्गुरु मणियाले० ॥६॥
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