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दादागुरु देव पूजा संग्रह
पंच महाव्रत धार, दादा सुविहित साधु । सद गुरु है वे सार आत्म के हित कारी || श्री जिन कुशल ० ॥ ३ ॥
धर्म अहिंसा मूल, दादा जिन आज्ञा में । धारक जो नर नार, होबे वे भवपारी ॥
श्री जिन कुशल ० ॥ ४ ॥ कुगुरु कुदेव कुधर्म, दादा त्याग करावे | समकित वर दे दान, अनहद आनन्द कारी ॥
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श्री जिन कुशल० ॥ ५ ॥
निश्चय अरु व्यवहार, दादा भेद बतावे । निश्चय धरो दिन बीच, वर्तो थे व्यवहारी ॥ श्री जिन कुशल० || ६ ||
सुख सागर भगवान दादा कुशल गुरु की । महिमा अपरम्पार, गावे सब नर नारी ॥
श्री जिन कुशल ० || ७ ||
॥
गुरु आज्ञा परिधान, भविजन जो कर पावे । सुर गणपति हरितास, गावे कीरति भारी || श्री जिन कुशल० ॥ ८ ॥
( काव्यम् )
यः सद्गुणालंकृत पुण्य भावः दादाभिधानः कुशलाख्यसूरिः ।
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