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६२ तृतीय दादागुरु देव पूजा निज हितकर उपदेश दिया,
गुरु दीपक कुशल सूरीश्वर ने।
अज्ञान तिमिर० ॥ २॥ पंचेन्द्रिय विषम विषय त्यागी.
नव विधवर ब्रह्म गुपतिधारी । कर पंचसमिति दी शुभ शिक्षा,
गुरु दीपक कुशल सूरीश्वर ने ॥
अज्ञान तिमिर० ॥३॥ अध्यातम सम्यक् भाव भरें,
सविवेक महावत पंच धरे । अपना परका कल्याण किया,
गरु दीपक कशल सूरीश्वर ने ॥
अज्ञान तिमिर० ॥४॥ हैं दुश्मन चार कषाय उन्हें,
झट तीनों गुप्ति में कैद किये। संयम पथ सुन्दर शुद्ध किया,
गुरु दीपक कुशल सूरीश्वर ने।
अज्ञान तिमिर० ॥ ५॥ युग धर्म विकाश विशेष किया,
जग में जीवन संचार किया। कर दी प्रभावना शासन की,
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