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दादागुरु देव पूजा संग्रह सोलह सो सतरे वरसे, कार्तिक सुद सातम दिवसे । सब गच्छी थे मध्यस्था, गुरु जय जय कोर्ति उचारी ॥
जिनचन्द्र गुरु जयकारी० ॥६॥ सागर ने अति अभिमाने, कई ग्रंथ लिखे मनमाने । वे जलशरणागति पाये, गुरु महिमा अपरंपारी ॥
जिनचन्द्र गुरु जयकारी० ॥७॥ जिनचन्द्र गुरु सुखसिध. भगवान अकारण बन्धु । है चरण-शरण सुखकारा, पूजों भवि सुमनस् धारी ॥
जिनचन्द्र गुरु जयकारी० ॥८॥ कमनीय कुसुम वरमाला, पूजो गुरु पुण्य विशाला। हरि सद् गुरु की बलिहारी, दें विकसित पद अविकारी ॥
जिनचन्द्र गुरु जयकारी० ॥६॥
श्लोक
दिल्हीश्वराकबरबोधि-युगप्रधान,
दादाभिधान सुगुरो र्जिनचन्द्रसूरेः। पादारविन्द युगलं कुसुमोपचारैः,
सत्सौरभैरनुदिनं प्रणतो यजेऽहम् ॥
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