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द्वितीय दादागुरु देव पूजा श्रीजिनदत्त परमगुरु कृपया षट वर्षीवय में । सा रासल देल्हण देवी नन्दन संयमधारी हैं श्रीम० ॥१॥ ___चौदह वर्षी वयमें गुरुने गणपति पद धारा । करवादि विजय निज जश कीरति जगमें विस्तारी है श्रीम०२
श्रीमहतियाण महती जाती को जैन बना करके । श्रीसंघवृद्धि करनेवाले गुरुको बलिहारी है श्रीम० ॥३॥
दल्हीपति श्रीमदनपाल महाराजा को बोधा । जैन बनाया, धर्म भावना खुब प्रचारी है श्रीम० ॥४॥
प्रतिबोधे श्रीमालवंश के गोत्र कई गुरु ने। है उनका इतिहास जीवनी उनकी भारी है श्रीम० ||५||
हा ! छब्बीस बरस की वयमें स्वर्गवास पाये। दीलही तीरथ धाम धन्य अधुना उपकारी है श्रीम० ॥६॥
भादो कृष्ण चतुरदशी गुरुकी पुण्य जयंती को । खूब मनाओ मानो फिरतो विजय हमारी है श्रीम० ।। श्रीजिनपति सूरश्वर सद्गुरु के पटधारी थे । मत्तवादीगज सिंहकेसरी कीर्ति उदारी है श्रीम० ॥८॥
खरतरगणनायक सुखसागर श्रीभगवान्गुरु । मणिधारी दादा की पूजा मंगल कारी है श्रीम० ॥९॥ ___उन्नोस सो अट्ठाणु सुद, आषाडी दूज दिने। मोकल सर में पुण्य प्रयत्न यह अवतारी है श्रीम० ॥१०॥ __दिव्य सत्य इतिहास भावसे सद्गुरु दर्शन पा। 'जिनहरि सद्गुरु-पूजा गाओ आनन्दकारी हैं श्रीम०।११॥
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