Book Title: Dada Gurudevo ki Char Pujaye
Author(s): Harisagarsuri
Publisher: Jain Shwetambar Upashray Committee

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Page 48
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Norwervrum द्वितीय दादागुरु देव पूजा गुरु ने महतियाण जाती, बोधे गोत्र विविधभांती। हुए वे जैन धर्म अगिवान, अहा ! गुरु बोध शक्ति विज्ञान ।। ___ गुरु मणियाले वांछितदान० ॥ ५ ॥ पूर्व दिक् तीर्थों का इतिहास, बताता महतियाण परकाश। प्रतिज्ञा उनकी एक महान्, "जिनंजिनचन्द्र नमें न आन" । गुरु मणियाले वांछितदान० ॥ ६ ॥ गुरु ने सिरीमालबर वंश, कई गोत्रों में अनुपम अंश । देकर पावन समकितज्ञान, बढ़ाया जैन संघ सन्मान । गरु मणियाले वांछितदान० ॥७॥ जो नित जपता सदगुरु नाम, पाता सुख संपति धनधाम । सुरतरु सुरमणि परतिख मान, गुरुको, सेवो हे मतिमान् ! ॥ गुरु मणिधारी वांछितदान० ॥ ८॥ न होता भूत प्रेत भय भोग, मिटते आधि-व्याधि-वियोग। करें गुरु देव परम कल्यान,घरो नित मनमें गुरु का ध्यान ॥ गुरु मणिधारी वांछितदान० ।। ६ ॥ दादा मणिधारी जिनचंद, कार्ट कोटी संकट - कंद । गुरु हैं सुखसागर भगवान, हरिगुरु पूजो धर पकवान ॥ गुरु मणिधारी वांछितदान० ॥ १० ॥ श्लोकसन्मोदकोऽयं मधुरप्रवाही, श्रीजैनचन्द्रो मणिधारिदादा। For Private And Personal Use Only

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