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दादागुरु देव पूजा संग्रह दर्शन वन्दन करते तन मन-पाप मिट जाता। मैं वारि जाउं पाप ताप मिट जाता ॥ ३ ।। बिन गुरु नर निगुरा कहलावे-भव भटकत दुःख पाता । मैं वारि जाउ भव भवकत दुःख पाता ॥ ४ ॥ गुरु आज्ञावर्ती हो प्राणी, अगम निगम गुणज्ञाता। मैं वारि जाउं अगम निगम गुण ज्ञाता ॥ ५ ॥
चैत्यवन्दनवर कुलकसुटीका, गुरु साहित्य प्रख्याता। मैं वारि जाउं गुरु साहित्य प्रख्याता ॥ ६ ॥ गुरुसाहित्यउदितआदित्यकी, ज्योतिजगसुखदाता। मैं वारि जाउं ज्योति जग सुख दाता ॥७॥ गुरु पारस फरसत नर लोहा, वर सुवरन बनजाता। मैं वारि जाउं वर सुवरन बन जाता ॥ ८ ॥ सुखसागर भगवान सुगुरु हरि, पूजो भवभयत्राता। में वारि जाउं पूजो भव भय त्राता ॥ ६ ॥
(काव्यम् ) कल्याण-कल्पद्रु फल प्रदायी
दादाभिधानः कुशलाख्यसूरिः ॥ तत्पाद-पद्मद्वितयं नमामि
फलेन पूजांसु समाचरामि ।।
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