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द्वितीय दादागा व प्रजा या
२५
१--जल पूजा
दूहाविमलगुणी गुरुदेव की, दिव्य विमल गुणदान । जल-पूजा मल को हरे, भरे विमल गुणभाव ।। (तर्ज-अवधू सो जोगी गुरु मेरा० राग-आशाउरी )
गुरु की जल पूजा मलहारी,
जाऊँ मैं बलिहारी ।गुरु० ॥टेर ।। जल पावनता रहती है. गुरु हैं पावन कारी । यातें जल पूजा नित करियं, निर्मल भाव विचारी । ____ गुरु की जल पूजा मलहारी ॥१॥ जल कहते जीवन को रस को, गुरु हैं जीवन दाता । ज्ञान सरस रस सींच सींच कर, प्रकटाते सुखसाता॥ ___गुरु की जल पूजा मलहारी ॥ २ ॥
श्री जिनचन्द्र सूरि मणियाले, दादा गुरु उपकारी। जिन शासन के परम प्रभावक जग में जय जय कारी॥
___ गुरु की जल पूजा मलहारी ॥३॥ स्वस्ति श्री मय विक्रमपुर गुरु. जन्म भूमि अभिरामा। साह रासल देल्हण दे नन्दन, निर्भय जय गुणधामा ।
गुरु की जल पूजा मलहारी ॥ ४॥
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