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प्रथम दादागुरु देव पूजा १७ कोई न कार लागे, लोक हैरान भागे। श्रीगुरु शरण मझारी ॥ दादा गुरु० ॥५॥
जैनोंमें प्रकटी साता, हैं गुरु शान्ति दाता । विनोंने विनती उचारी ॥ दादा गुरु० ॥६॥
रक्षा हमारी करो, मारीको दूर करो। हम शिर आज्ञा तुम्हारी ॥ दादा गुरु० ॥ ७ ॥
समकित श्रावकदीक्षा, साधुदीक्षा सुशिक्षा । दें गुरु शान्ति अवतारी ॥ दादा गुरु० ॥ ८ ॥
किये एक लाख पर, तीस हजार वर । गुरु श्रावक गुण धारी ॥ दादा गुरु० ॥ ६ ॥
जैनेतर शुद्धि करते, संघ की वृद्धि करते। श्रीजिनशासन जयकारी ॥ दादा गुरु० ॥ १० ।।
समपरिणामी नामी, निन्दक बन्दक में स्वामी। "हरि" कहे जाऊं बलिहारी ॥ दादा गुरु० ॥ ११ ॥
श्लोक
ननाधि भोतिकगदादिविमर्दनाय,
शश्वद् बुभुक्षितपदोदयवारणाय । नैवेद्यवस्तुभिरनुत्तर-सद्रसाढ्य
दोपसंज्ञजिनदत्तगुरुं यजेऽहम् ।।
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