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दादागुरु देव पूजा संग्रह
भालस्थलाय दादा श्रीजिनचन्द्रसूरश्वराय दीपकं यजामहे स्वाहा ||
६--अक्षत पूजा । दूहा -
सरल समुज्ज्वल भावमय, सद्गुरुपद सविशेष । अक्षत पूजा साधना, कीजें अकपट बेश ||
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(तर्ज - दादा देव दयालु तुम को लाखों प्रणाम ) मणिधारी महाराज तुमको लाखों परणाम । करू विनय से पूजा करके लाखों परणाम ||टेर || संघ चतुर्विध समरथ नेता, परवादी मत सफल विजेता । नेता सफल विजेता गुरुको, लाखों परणाम मणि० || १॥ पुर नरपाल में ज्योतिष मानी, गुरु हरावें पूरे ज्ञानी । ज्योतिषविद्यावाले गुरुको लाखों परणाम मणि० || २ || रूद्रपल्ली में आप पधारे, लघुवय था, थी शक्ति आपारे । दिव्य शक्ति बलशाली गुरुको, लाखों परणाम मणि || ३ || पद्मचंद्र वह सिथिलाचारी, बड़ा घमंडी चर्चाकारी । उसे हराने वाले गुरुको, लाखों परणाम मणि० ||४|| तमो द्रव्य चर्चा विस्तारी, राज सभा के सब अधिकारी ।