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चतुर्थ दादागुरु देव पूजा पट्टानुक्रम श्रीजिनमाणिक, सद्गुरु गुण भण्डार । पट्टप्रभावक चौथे दादा, जगमें जय जयकार रे॥
गुरु ज्ञान की गंगा० ॥ ८॥ दादा गुरु सुखसागर सांचे, पूज्येश्वर भगवान् । अकवर भाव अहिंसक हेतु, युगपरधान महान रे॥
गुरु ज्ञान की गंगा० ॥ ६ ॥ हरि गुरु श्रीजिनचंद्र सूरीश्वर, दादा चरणसरोज । भक्ति विमल जल सींचो फैले, निज आतम बल ओज रे॥ गुरु ज्ञान की गंगा० ॥ १० ॥
श्लोकदिल्हीश्वराकवरबोधि-युगप्रधान,
दादाभिधान सुगुरोर्जिनचन्द्रसूरेः । पादारविन्दयुगलं विमलात्मभावं, दिव्यञ्जलेन विमलेन सदा यजेहम् ।
मन्त्रॐ ह्रीँ श्रीँ अहं परम पुरुषाय परमगुरुदेवाय भगवते श्रीजिनशासनोद्दीपकाय अकबर सम्राट प्रतिबोधकाय युगप्रधान श्रीजिनचन्द्रसूरीश्वराय
जलं यजामहे स्वाहा ।
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