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तृतीय दादागुरु देव पूजा
( काव्यम् )
भव्य - प्रसून प्रतिबोधकारी, दादाभिधानः कुशलाख्य सूरिः ।
तत्पाद - पद्म - द्वितयं नमामि
प्रसून - पूजैः परिपूजयामि ॥
मन्त्र
ॐ ह्रीँ श्रीँ अर्ह परम पुरुषाय परम गुरुदेवाय भगवते श्रीजिनशासनोद्दीपकाय श्री जिनकुशल सूरीश्वराय पुष्पं यजामहे स्वाहा ।
४ धूप पूजा ।
दूहा -
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हैं गुरु धर्म दशांगयुत उरध सिद्ध गति भाव । पूजो धूप दशांग से, गुरुपद गुरुपद दाव ||
तर्ज - ( हो उमराव थारी बोली प्यारी लागे )
हो गुरुराज पद शुभ भावधरी नित पूजो नर नार । हो गुरुराज पूजा करते भविजन होवें भव पार || भवपार हो जी नर नार || ढेर ||
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