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चतुर्थ दादागुरु देव पूजा
दिन दश पनरे अरुवीस पचीस, तथा महिनादो महिना की । ओरों से भी जीवदया करवाई चन्द सूरीश्वरने ॥ जिन० ॥ ७ ॥
नृप
काश्मीर विजय में अकबर ने गुरु शिष्य बड़े निज साथ लिये । त्यागी जीवन की महिमा को, दिखलाई चन्द सूरीश्वरने || जिन० ॥ ८ ॥ श्रीनगर अमारी आठ दिनों तक करवाई गुरू शिष्योंने । निज दिव्य ज्ञान गुण गरिमा को दिखलाया चन्द सूरीश्वरने । जिन० ॥ ६ ॥
अकबर ने गुण रंजित होकर, वर 'युगप्रधान ' पद खूब दिया । जिन शासन डंका बजवाया, सुख सागर चंद सूरीश्वरने || जिन० ॥ १० ॥ जीवाभय दान विधान गुरु, भगवान की पूजा नित्य करो । हरि अभय बनो जय विजय वरो, फरमाया चंद सूरीश्वरने ॥ जिन० ॥ ११ ॥
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श्लोक
दिल्हीश्वराकवर बोधि-युगप्रधान
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दादाभिधान सुगुरोर्जिनचन्द्र सूरेः ।
पादारविन्द युगलं परम प्रसादं
नैवेद्यवस्तुभिरहं प्रणतो यजेऽहम् ॥
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