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प्रथम दादागुरु देव पूजा
१६ संघ सकल व्याकुल कहे गुरुसे, रखिये लाज हमारी। तब गुरुने निज योग शक्ति मृत-गया में संचारी रे॥
वरदायी गुरु को० ॥४॥ श्रीगुरु - महिमा लख नत-मस्तक-ब्राह्मण आज्ञा धारें। संघ के सेवक अब तक भी वे-भोजक सेवा सारे रे ।
वरदायी गुरु की० ॥५॥ सुर-नर-वीर-पीर सब सेवक-ब्रह्म योग बल खींचे। श्रीसद्गुरु के चरण कमल में, निज भक्ति जल सींचे रे।।
वरदायी गुरु की० ॥६॥ सद्गुरु ध्यान करो दुःख नाशे आतम ज्योति प्रकाशे । निज अज्ञान दशा हटने से अनुभव लील विलासे रे ॥
वरदायी गुरु की० ॥ ७ ॥ सुखसागर - भगवान सुगुरुकी - पूजा भवि विरचावें । सुर 'गुणनायक हरि' गुण लायक कीरती प्रतिदिन गावेरे॥
वरदायी गुरु की० ॥ ८॥
श्लोकइष्टातिमिष्टरस पूर्णपदाय दिव्य
स्वर्गापवर्ग-सुखभोग-फलाय भक्त्या सर्वतजन्य सुरसैः सुफलै मनोज्ञ
दर्दादोपसंज्ञ-जिनदत्त गुरु यजेऽहम् ॥
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