Book Title: Dada Gurudevo ki Char Pujaye
Author(s): Harisagarsuri
Publisher: Jain Shwetambar Upashray Committee

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Page 27
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रथम दादागुरु देव पूजा १६ संघ सकल व्याकुल कहे गुरुसे, रखिये लाज हमारी। तब गुरुने निज योग शक्ति मृत-गया में संचारी रे॥ वरदायी गुरु को० ॥४॥ श्रीगुरु - महिमा लख नत-मस्तक-ब्राह्मण आज्ञा धारें। संघ के सेवक अब तक भी वे-भोजक सेवा सारे रे । वरदायी गुरु की० ॥५॥ सुर-नर-वीर-पीर सब सेवक-ब्रह्म योग बल खींचे। श्रीसद्गुरु के चरण कमल में, निज भक्ति जल सींचे रे।। वरदायी गुरु की० ॥६॥ सद्गुरु ध्यान करो दुःख नाशे आतम ज्योति प्रकाशे । निज अज्ञान दशा हटने से अनुभव लील विलासे रे ॥ वरदायी गुरु की० ॥ ७ ॥ सुखसागर - भगवान सुगुरुकी - पूजा भवि विरचावें । सुर 'गुणनायक हरि' गुण लायक कीरती प्रतिदिन गावेरे॥ वरदायी गुरु की० ॥ ८॥ श्लोकइष्टातिमिष्टरस पूर्णपदाय दिव्य स्वर्गापवर्ग-सुखभोग-फलाय भक्त्या सर्वतजन्य सुरसैः सुफलै मनोज्ञ दर्दादोपसंज्ञ-जिनदत्त गुरु यजेऽहम् ॥ For Private And Personal Use Only

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