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दादागुरु देव पूजा संग्रह ३३ भावी सूचना विशद विधानी, योग-ज्ञान बल दिव्य निशानी,
सावधानता की थी वानी, गुरु का महा उपकारा । पूजा से पाते भवी० ॥ ४ ॥
बारह सो ग्यारह आषाढी, देव शयनि ग्यारह गुणगाढे,
प्रभुक्ति चितमें अति बाढी, गुरुदत्त स्वर्गे सिधारा। पूजा से पाते भवी० ॥ ५ ॥
सदगुरु का मरणा भी जीना, हम को देता बोध प्रवीना,
करो आत्म-करतव्य अदीना, गुरुदत्त बोध उचारा । पूजा से पाते भवी० ॥६॥
गुरु ज्योति तब गुरु में प्रकटी, उदासीनता झटपट विघटी,
संचालन की शासन - शकटी, गुरु बल तेज उदारा। पूजा से पाते भवी० ॥७॥
गच्छपति गुरु श्रीजिनचन्दा, तेज तिरस्कृत सूरज चन्दा,
संघ चतुर्विध में आनंदा, फला सुवास अपारा। पूजा से पाते भवी० ॥ ८॥
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