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प्रथम दादागुरु देव पूजा
दत्त सुनाम के जाप जपे ते। विजली न करती संहार । संहार मेरे प्यारे म० ॥४॥
___ वयंभ से विद्या की पुस्तक । की योगबल से स्वीकार । स्वीकार मेरे प्यारे म०॥ ५ ॥
पंच नदी पर पीर उपद्रव । करने पे पाये थे हार। हार मेरे प्यारे म० ॥६॥
रहते गुरु की खिदमतमें हाजिर। गुलाम जैसे हरबार। बार मेरे प्यारे म० ॥७॥
___ सात दिये वरदान विनय से। दादा गुरू को उदार। उदार मेरे प्यारे म० ॥ ८ ॥
भूत प्रेत ग्रह-व्यन्तर-मारी । होंगे न पीड़ा प्रचार । प्रचार मेरे प्यारे म० ॥६॥
श्लोक---
नित्याशत प्रकट सौख्यपदाय चंचच्
___चन्द्रोज्ज्वलाद्भुत गुणोत्तम सौरभाय । पुण्याक्षतैः सरलतांचित-चित्तवृत्ति
दोपसंज्ञजिनदत्त - गुरु यजेऽहम् ॥
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