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१८
दादागुरु देव पूजा संग्रह
मन्त्र
ॐ ह्रीँ श्री अहं परम पुरुषाय परम गुरुदेवाय भगवते जिनशासनोद्दीपकाय दादा श्रीजिनदत्त
सूरीश्वराय नैवेद्म यजामहे स्वाहा ॥
८-फल पूजा।
सरस सुकोमल सफल-पद, पूजो श्रीगुरु-राज। नित सुर-शिवसुख फल मिले, निजधर अविचल राज ॥
(तर्ज - केसरिया थांसु प्रीत०) वरदायी गुरु की सेवा करो रे भवी भाव से ( टेर) श्रीजिनदत्तसूरीश्वर दादा, मनवांछित फलदानी । परम प्रभावक अतिशयज्ञानी. और न जिनके सानीरे ॥
वरदायी गुरु की० ॥१॥ विचरंता बड़नगर पधारे, उत्सवमय जयकारी । श्रीजिनशासन संघ महोदय, घर - घर मंगलाचारी रे॥
वरदायी गुरु की० ॥२॥ अभिमानी ब्राह्मण ईर्षानल-जलते कुमत विचारी। मृत गैया जिनमन्दिर आगे, रख निन्दा विस्तारी रे ।।
वरदायी गुरु की० ॥३॥
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